The Unsolved Mestry of Titanic in Hindi.
RMS टाइटैनिक दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था। वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ। चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक हिमशिला से टकरा कर डूब गया जिसमें 1,517 लोगों की मृत्यु हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है।
10 अप्रैल 1912 इंग्लैंड के सौथामपटों (southampton) बंदरगाह से न्यूयॉर्क के लिए उसवक़्त का ऐक सबसे बड़ा और आलिशान जहाज अपने पहले सफर पर निकला जिसका नाम था आरएमएस टाइटैनिक ईसे देखकर कोई भी नहीं सोच सकता था की ये इसका पहला और आखिरी सफर होगा आज हम इसी के बारे मे बात करने वाले है...की ऐक येसा जहाज जिसे The unsicabal कहा जाता था आखिर उसके डूबने का क्या कारण था तो चलिये जानते हैं।टाइटैनिक जहाज़ के इतिहास के बारे में।
News Hedline.।
4 दिन यात्रा के बाद यानि 14 अप्रैल 1912 की रात 11 बजकर 40 मिनट पर ये घोषणा हुई कि टाइटैनिक एक भीषण हादसे का शिकार हो गया है और इस घोषणा के के करीब 3 घंटे बाद 15 अप्रैल की सुबह 2:20 पर ये जहाज अटलांटिक महासागर के ठन्डे और बर्फीले सतह के निचे पूरी तरह से गायब हो गया और टाइटैनिक जहाज़ अकेला ही नहीं डूबा बल्कि अपने साथ 1500 से भी ज्यादा ज़िंदगी को ले डूबा
हादसे का कारण टाइटैनिक का एक बड़े हिमखंड से टक्कर होना बताया गया जिसके बाद इस जहाज़ में एक बड़ा छेद हो गया जिस कारण टाइटैनिक जहाज़ में पानी भर गया और वो डूब गया
The Mystery of Titanic in Hindi । The Unsinkable Ship Story in hindi।
लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी की जब टाइटैनिक का निर्माण किया गया था तो ये दावा किया गया था की ये एक अनसिंकेबल शिप यानि कभी का टूटने वाला जहाज़ है टाइटैनिक उस समय सबसे अनुभवी इंजीनयरों द्वारा बनाया गया था और इसके निर्माण में उस समय की सबसे उन्नत और प्रभावी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था तो अपने पहले ही सफर में टाइटैनिक के हिमखंड से टूटने की बात में कितनी सच्चाई है चलिये जानते हैं।
शोधकर्ताओ की बात को देखा जाये तो वो सभी आजतक टाइटैनिक जहाज के डूबने की बात को आजतक नकारते आये है, 46000 टन वजन, 882 फ़ीट लम्बाई, 92 फ़ीट चोराई और 175 फ़ीट उचाई वाला टाइटैनिक अपने समय का सबसे विशाल समुद्री जहाज़ था इसकी विशालता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है की 882 फीट लंबाई वाले जहाज़ को अगर सीधा खड़ा कर दिया जाये तो यह अपने समय की हर इमारत से ऊंचा होता।
निर्माण और बनावट :-
आकार में ये जहाज़ 3 फुटबॉल मैदान से भी बड़ा हुआ करता था 20 मंज़िल उचाई जितने ऊंचे टाइटैनिक जहाज़ का निर्माण बहुत ही जोखिम भरा था इसके निर्माण के दौरान 8 मजदूर गिरकर मारे गए जबकि 246 मजदूर घायल हो गए
टाइटैनिक जहाज़ को बनाने का काम 31 मार्च 1909 में 3000 लोगो की टीम द्वारा शुरू किया गया और सिर्फ 26 महीनो यानि 31 मार्च 1911 तक इसे पूरा बना दिया गया लेकिन इसकी चिमनिया लगाने और डेकोरेशन का काम 1912 तक चलता रहा
उस समय टाइटैनिक के निर्माण की लागत 7.5 मिलियन डॉलर आयी थी लेकिन आज की मुद्रा स्तिथी के हिसाब से इस विशालकाय जहाज को बनाने की लागत 400 बिलियन डॉलर यानि की 26000 करोड़ रूपए के आसपास आती है इतनी बड़ी लागत और उस समय की सबसे बेहतरीन तकनीक और सबसे बेस्ट मटेरियल से बने टाइटैनिक का महज़ एक बर्फीली चट्टान से टकराकर 2 टुकड़ों में टूट जाना सच में एक अविश्वनीय घटना है और इसी सच्चाई से पर्दा हटाने के लिए शोधकर्ताओ ने कई विशेष कारणों से पर्दा हटाया है।
वे सारे नाम जो टाइटैनिक बनाने में शामिल हुए :-
टाइटैनिक के डिजाइनरों में Lord Pirrie का नाम प्रमुख है. वह Harland & Wolff और White Star के संचालक थे. नौसेना आर्किटेक्ट Thomas Andrews इसी कंपनी में निर्माण प्रबंधक और डिजाइन विभाग के प्रमुख थे. फिर नाम आता है Alexander Carlisle का जो कि शिपयार्ड के प्रमुख रचनाकार और जनरल मैनेजर थे. Alexander Carlisle की ही जिम्मेदारी थी कि वह जहाज में विलासिता से भरी साज-सज्जा कराएं, जरूरी उपकरण, व्यवस्था और Lifeboat रखें.
टाइटैनिक का निर्माण :-
टाइटैनिक का निर्माण 31 मार्च 1909 को American J.P. Morgan और International Mercantile Marine Co. की लागत से शुरू हुआ.
इसके पतवारों को 31 मई 1911 को जल में उतारा गया और तैयारी होने लगी कि अगले साल इसकी यात्रा शुरू कर दी जाए.
टाइटैनिक की कुल लम्बाई 882 फीट और 9 इंच (269.1 मीटर), इसके ढालों की चौड़ाई 92 फीट (28.0 मीटर), भार 46,328 टन (GRT) और पानी के स्तर से डेक तक की ऊंचाई 59 फीट (18 मीटर) थी. जहाज में दो पारस्परिक जुड़े हुए चार सिलेंडर, triple-expansion steam engines और एक कम दबाव Parsons turbine (जो प्रोपेलर को घुमाते थे) था.
इसमें 29 boiler थे जो 159 कोयला संचालित भट्टियो से जुड़े हुए थे और जहाज को 23 समुद्री मील (43 km/h, 26 mph) की तेज गति प्रदान करते थे. 62 फीट (19 मी) की उचाई की चार में से केवल तीन funnel काम करती थीं और चौथी funnel, वेंटिलेशन के लिए थी. इसके साथ ही यह जहाज को अधिक सजावटी और आकर्षक भी बनाती थीं. जहाज की कुल क्षमता यात्रियों और चालक दल के साथ 3549 थी.
The Mystary of Titanic :-
जब टाइटैनिक अपने पहले और आखिरी सफर पर निकला था उसी समय एक पत्रकार ने एक फोटो ली थी जिसे देखकर साफ़ साफ़ पता चलता है कि जहाज़ के नीचे एक काला निशान था हलाकि की उस समय इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन हादसे के बाद जब शोधकर्ताओ ने खोजबीन शुरू की तो पता चला कि टाइटैनिक के रवाना होने से पहले ही टाइटैनिक में रखे कोयले में आग लग गई थी।
कमाल की बात ये है की ये आग लगभग 3 हफ्ते से जल रही थी और इसपर किसी की नजर ही नहीं गयी और इतना तो हम सभी जानते है कि लोहा गर्म होने पर लाल और कमजोर हो जाता है आग की वजह से जहाज के निचे की तरफ का काला हिस्सा लाल हो चूका था जैसा की आप निचे दी गयी फोटो में देख सकते है
और दुर्भाग्यवश जहाज़ भी हिमखंड के ठीक उसी हिस्से में जा टकराया जो आग में जलकर कमजोर हो चुका था अगर समय रहते उस आग पर ध्यान दिया गया होता तो शायद टाइटैनिक के उस हिस्से में हिमखंड के टक्कर से छेद नहीं होता बल्कि सिर्फ एक बड़ा झटका लगकर ही रह जाता और शायद टाइटैनिक कभी नहीं डूबता
बताया जाता है कि टाइटैनिक को चलने के लिए प्रतिदिन 600 टन कोयले की आवश्यकता पड़ती थी दरअसल उस समय कोयला की खदानों में हड़ताल चल रही थी इसलिए जहाज़ में कोयले की आपूर्ति मुश्किल हो गयी थी
देखा जाये तो जहाज़ की सारी टिकटें पहले ही बुक हो चुकी थी ऐसे में जहाज़ के मालिकों ने जहा से संभव हो सके कोयला खरीदा और दूसरे जहाजों की यात्राये रद्द करवाकर भी उनमें मौजूद कोयले को भी महंगे दामों में खरीद लिया और इसी वजह से दूसरी जहाज़ के यात्रियों को भी टाइटैनिक में शिफ्ट कर दिया गया लेकिन ये उन्हें कहा पता था की ये उनका आखिरी सफर होने वाला है।
टाइटैनिक की भव्यता और लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है की इसकी पहली यात्रा को देखने के लिए लगभग 1 लाख से भी ज्यादा लोग आये थे।
टाइटैनिक का इंटीरियर लंदन के गेट होटल पर आधारित था स्विमिंग पूल और जिम से लेकर टेनिस कोर्ट और म्यूजिक से जुडी सारी सुविधाओ से जुड़ा ये जहाज़ किसी तैरते हुए महल से कम नहीं था टाइटैनिक पर यात्रियों के लिए 20000 बियर और शराब की बोतले 80000 महँगे सिगार और तरह तरह के खाने की वयवस्था थी।
Miths & Mystris :-
टाइटैनिक के डूबने के पीछे का मिथ्स। ऐक कारण यह भी बताया जाता हैं।
टाइटैनिक के डूबने के पीछे दूरबीन की कमी को भी बताया गया दरअसल उन दिनों सोनार सिस्टम नहीं आया था सोनार सिस्टम में एक प्रकार की ध्वनि तरंगे लगातार छोड़ी जाती है और जब वो तरंगे किसी वस्तु से टकराकर वापस आती है तो ये सिस्टम उस वस्तु की आकार और दूरी का सही पता कुछ किलोमीटर की दूरी से ही कर लेता है
उस समय किसी मनुष्य के द्वारा ही दूरबीन की सहायता से समुद्री जहाज़ों के सामने पड़ने वाले रुकावटो पर नजर रखी जाती थी लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण बात ये भी रही कि जिस कर्मचारी द्वारा दूरबीन से नजर रखी जाती थी उसे जहाज़ के रवाना होने से कुछ मिनटों पहले नौकरी से निकाल दिया गया था।
और गलती से उस दूरबीन के लॉकर की चाबी उस कर्मचारी के पास रह गयी थी और इसीलिए नए कर्मचारी को दूरबीन नहीं मिल पाया और उसे जहाज़ के सामने आने वाली रुकावटों को अपनी नंगी आंखो से देखना पड़ा।
यही कारण था की उसको वो हिमखंड तब नजर आया जब जहाज़ हिमखंड से महज़ 100-200 मीटर की दूरी पर ही रह गया था अगर शायद उस कर्मचारी को दूरबीन मिल गयी होती तो वो उस हिमखंड को कुछ किलोमीटर पहले ही देख सकता था तो शायद टाइटैनिक को इस दुर्घटना से बचाया जा सकता था।
हिमखंड से टकराने की कहानी :-
दरअसल अटलांटिक महासागर में ऐसे हिमखण्ड तैरते रहते है इस जहाज़ के कप्तान एडवर्ड स्मिथ को जहाज़ के रास्ते में 6 बड़े हिमखंड की चेतावनी पहले ही दे गयी थी और उनको जहाज़ के धीरे चलने के निर्देश भी दिए गए थे लेकिन शायद एडवर्ड टाइटैनिक की प्रतिस्ठा में एक और रिकॉर्ड जोड़ना चाहते थे कि टाइटैनिक को सबसे विशालकाय और सबसे तेज़ जहाज़ होने का भी दर्जा दिलवाना चाहते थे इसलिए वह हर हाल में न्यू यॉर्क जल्दी पहुंचना चाहते थे।
अगर जहाज़ की स्पीड थोड़ी कम होती तो शायद हिमखंड से टकराने के बाद जहाज़ को काबू में लाया जा सकता था पर गति ज्यादा होने के कारण जहाज़ को जल्दी मोड़ा न जा सका और जहाज़ तेजी से हिमखंड से जा टकराया
टाइटैनिक पर एक साथ 3547 लोग सफर कर सकते थे जिसमे 2687 यात्री हो सकते थे बाकि 860 जहाज़ में काम करने वाले लोग होते थे लेकिन इसकी पहली यात्रा के दौरान इसपर करीब 2228 लोग ही सफर कर रहे थे टाइटैनिक में यात्रियों की संख्या के हिसाब से लगभग 60 आपात्कालीन नाव होनी चाहिए थी लेकिन टाइटैनिक के डिजाइनर ने इससे 48 आपात्कालीन नाओ के साथ ही तैयार करने की योजना बनायीं और बाद में नावों की संख्या केवल 20 करदी थी।
आपातकालीन नाओ को घटने की डिजाइनर से जब वजह पूछी गयी तो उन्होंने बताया कि इतनी सारी नाओ को लटकाने से टाइटैनिक की सुंदरता खराब हो रही थी और वैसे भी ये कभी न डूबने वाला जहाज़ है
अगर इसकी सुंदरता को ध्यान में न रखकर जरुरत के हिसाब से इसमें आपात्कालीन नाओ लगाया गया होता तो शायद हादसे के बाद भी आपातकालीन नाओ के जरिये सभी लोगो को सुरक्षित बचाया जा सकता था
हिमखंड से टकराने के बाद जब टाइटैनिक में छेद हुआ तो जहाज़ के कप्तान को यकीन नहीं हो रहा था की ये जहाज़ डूब जायेगा और इसीलिए पहली आपातकालीन बोट को रवाना करने में लगभग 1:30 घंटे का समय लगा दिया गया
और अजीब बात तो ये थी की इस आपातकालीन नाओ में 65 लोगो के बैठने जगह थी और केवल इसमें 27 लोग ही सवार थे क्यूंकि ये किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि टाइटैनिक डूब जायेगा
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी टाइटैनिक के यात्रियों को आसानी से बचाया जा सकता था लकिन यह एक और सबसे बड़ी गलती की गयी वो ये थी की जब जहाज़ में पानी भरने लगा तो जहाज़ के कप्तान ने तब भी जहाज़ को धीमी गति से चलाना सही समझा क्युकी टाइटैनिक के हादसे की खबर सुनते ही एक दूसरे जहाज़ को मदद के लिए रवाना कर दिया गया था जोकि टाइटैनिक से महज़ 4 घंटे की दूरी पर ही था
लेकिन टाइटैनिक को दूसरे जहाज़ की तरफ धीमी गति से भी चलाना महंगा पड़ गया क्युकी जहाज़ के आगे बढ़ने से जहाज़ पानी के दवाब से और ज्यादा टकराने लगा और पानी बहुत तेजी से अंदर की तरफ घुसने लगा लेकिन जबतक कप्तान को इस गलती का एहसास हुआ तबतक अगले हिस्से में इतना पानी भर चुका था कि जहाज़ का अगला हिस्सा पानी में डूबने लगा था।
ऐसे में सभी यात्री जहाज़ के पीछे के हिस्से की तरफ दौड़ने लगे और इसके बाद जहाज़ का आगे का हिस्सा समुन्द्र में और ज्यादा धसने लगा और जहाज़ कुछ समय के लिए बिच से खड़ा होकर बिच से टूट गया लेकिन टूटने के बाद जहाज़ का ये हिस्सा अलग नहीं हुआ अगर हो जाता तो पिछले हिस्से वाले यात्रियों को अपनी जान बचाने का थोड़ा समय और मिल जाता।
लेकिन जहाज़ का पिछला हिस्सा भी अगले हिस्से की तरह समुन्द्र में डूब गया और इसी के साथ जहाज़ की सारी ज़िंदगिया भी डूब गयी।
बताया जाता है कि टाइटैनिक अटलांटिक महासागर के जिस हिस्से में डूबा वह पानी का तापमान माइनस -2 डिग्री था जिसमे एक साधारण इंसान का 20 मिनट से ज्यादा जिंदा रहना नामुमकिन है यही कारण है की लाइफ जैकेट पहनने के बाद भी कोई यात्री ज्यादा समय तक ज़िंदा नहीं रह पाया।
मरने वालों में ज्यादातर मर्द थे क्युकी महिलाओ को पहले ही जहाज़ से दूर भेज दिया गया था तो दोस्तों ये थी अटलांटिक महासागर में डूबे टाइटैनिक जहाज़ की असली घटना जिसका अंदाजा आप खुद लगा सकते है।
टाइटैनिक के साथ हुई इस भायक दुर्घटना के लिए आपके क्या विचार है या इस आर्टिकल में कुछ गलतियां है तो हमें कमेंट करके जरूर बताये।
जिस चट्टान से जहाज टकराया :-
जहाज अपनी यात्रा के चौथे दिन तेज गति में चलते हुए एक आइसबर्ग से टकरा गया था. एक अनुमान के मुताबिक यह बर्फीली चट्टान करीब 10,000 साल पहले ग्रीनलैंड से अलग हुई थी।
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